UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Samaj Nirman me Langik Mudde Study Material

UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Samaj Nirman me Langik Mudde Study Material : नमस्कार दोस्तों आज की पोस्ट में आप सभी अभ्यर्थी UPTET (Uttar Pradesh Teacher Eligibility Test) Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Book and Notes Chapter 9 समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे Study Material in Hindi में पढ़ने जा रहे है | अभ्यर्थियो को बता बता दे की UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Books and Notes Chapter 9 in Hindi PDF में भी शेयर किया गया है जिसका लिंक आपको निचे टेबल में दिया जा रहा है |

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समाज निर्माण में लैंगिक मुद्दे | UPTET Bal Vikas Evam Shiksha Shastra Chapter 9 Study Material in Hindi

समाज-निर्माण में लिंग की भूमिका

जब बालक 13 या 14 वर्ष की आयु में प्रवेश करता है तब उसके प्रति दूसरों के और दूसरों के प्रति उसके कुछ दृष्टिकोण से उसके अनुभवों एवं सामाजिक संबंधों में परिवर्तन होने लगता है। इस परिवर्तन के कारण उसके सामाजिक विकास का स्वरूप निम्न होता है

★ बालक और बालिकाएँ दोनों अपने-अपने समूहों का निर्माण करते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है—मनोरंजन, जैसे पर्यटन, पिकनिक, नृत्य, संगीत इत्यादि।

बालक और बालिकाओं में एक-दूसरे के प्रति बहुत आकर्षण उत्पन्न होता जाता है। अतः वे अपनी सर्वोत्तम वेश-भूषा, बनाव-शृंगार और सज-धज में अपने को एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

कुछ बालक और बालिकाएँ किसी भी समूह के सदस्य नहीं बनते हैं, वे उनसे अलग रहकर अपने या विभिन्न लिंग के व्यक्ति से घनिष्ठता स्थापित कर लेते हैं और उसी के साथ अपना समय व्यतीत करते हैं।

* बालकों में अपने समूह के प्रति अत्यधिक भक्ति होती है। वे उसके द्वारा स्वीकृत, वेश-भूषा, आचार-विचार, व्यवहार आदि को अपना आदर्श बनाते हैं।

★ समूह की सदस्यता के कारण उनमें नेतृत्व, उत्साह, सहानुभूति, सद्भावना इत्यादि सामाजिक गुणों का विकास होता है।

इस अवस्था में बालकों और बालिकाओं का अपने माता-पिता से किसी-न-किसी बात पर संघर्ष या मतभेद हो जाता है। यदि माता-पिता उनकी स्वतंत्रता का दमन करके, जीवन को अपने आदेशों की तरह ढालने का प्रयत्न करते हैं या इनके समक्ष नैतिक आदर्श प्रस्तुत करके उसका अनुकरण किये जाने पर बल देते हैं। किशोर बालक और बालिकाएँ अपने भावी व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सदैव चिन्तित रहते हैं। इस कार्य में उसकी सफलता या असफलता उसके सामाजिक विकास को निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं।

किशोर बालक और बालिकाएँ सदैव किसी-न-किसी चिन्ता या समस्या में उलझे रहते हैं, जैसे-धन, प्रेम, विवाह, कक्षा में प्रगति, पारिवारिक जीवन इत्यादि । ये समस्याएँ उनके सामाजिक विकास की गति को तीव्र श मन्द, उचित या अनुचित दिशा प्रदान करती है।

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लैंगिक भेद-भाव

अनेक शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने महिला तथा पुरुषों की उपलब्धि की तुलना को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है। उन्होंने अपने प्रतिदर्श को दो भागों में विभाजित

किया है—महिला और महिला और पुरुष। इन शोध के तथ्यों के अनुसार सामाजिक तथा शारीरिक आधार पर महिला और पुरुष में भिन्नता है।

नसंधान का मुख्य लक्ष्य था महिला और पुरुष के भेद को लिंग व्यवहार के द्वारा – इस  नुसंधा प में समझना। इस अनुसंधान का आधार मनोवैज्ञानिक या सामाजिक या। यह तथ्य इस धारणा को सिद्ध करते है कि शारीरिक बनावट के अनसार दोनों की संवेगों में भी अंतर होता है। मला और परुष वर्ग में सामान्य बुद्धि के संबंध में समानता पायी जाती है। इन हों में भेद कछ विशेष योग्यताओं या लक्षणों को लेकर है। औसतन पुरुषों में महिलाओं की तुलना में तर्क करने, वस्तुओं में समानता खोजने तथा सामान्य ज्ञान क्षेत्र में कछ श्रेष्ठता के संकेत मिलते हैं। लड़कियों में स्मरण शक्ति, भाषा तथा सौन्दर्य-बोध के गुण अधिक होते हैं।

शोध से यह पता लगाया गया है कि छात्राओं का भाषायी विकास छात्रों की तुलना में अल्पायु से ही अधिक होता है। विद्यालयपूर्व आयु वर्ग की बालिकाओं की शब्दावली इस आयु वर्ग के बालकों की तुलना में अधिक सक्षम होती है। छात्राओं की पठन गति भी छात्रों से अधिक होती है।

सामान्यतः दोनों वर्गों की बुद्धि अथवा शैक्षिक अभिक्षमता में इतना भेद नहीं होता है कि वे किसी दिये कार्य को असमान क्षमता से सम्पन्न न करें। इन तथ्यों के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि शैक्षिक कार्यक्रम तथा पाठ्यक्रम में अन्तर  जन्मजात बौद्धिक स्तर के कारण नहीं होता है।

व्यक्तित्व के विषय में लैंगिक भेद

> व्यक्तित्व भिन्नता के कारण ही बौद्धिक आचरण, व्यवहार तथा उपलब्धि में अंतर आने लगता है। रुचि, आदत, पृष्ठभूमि, जीवन के उद्देश्य तथा बौद्धिक योग्यता में भिन्नता के कारण ही हर व्यक्ति आशानुकूल उपलब्धियों के लिए अपने आचरण का मार्ग खोज निकालता है। कुछ व्यक्ति अन्तर्मुखी तथा कुछ बहिर्मुखी आचरण के होते हैं। किसी को अधिगम का एक विधि अच्छी लगती है तो दूसरे को अन्य विधि। कुछ आक्रामक स्वभाव के हात है तो कुछ स्वभाव से विनम्र होते हैं। इस प्रकार के अबौद्धिक लक्षण तथा गुण उसक विकास तथा मानसिक योग्यताओं की अभिव्यक्ति को अलग-अलग दिशाओं में प्रभावित कर सकते हैं। आयु के विषय में लैंगिक भेद स्था विकास के साथ ही बालक बालिकाओं में व्यक्तिगत रूप से, वर्गगत या त रूप से भेद परिलक्षित होते हैं। जैसे-जैसे अवस्था में विकास होता रहता है कार व्यक्ति में वातावरण से उत्पन्न जटिल समस्याओं के समाधान निकालने की क्षमता भी विकसित होने लगती है। किशोरावर) बालक बालिकाएँ जैसे ही शैशव अवस्था को पार कर प्रौढ़ावस्था त धक विकास भी उसी के साथ-साथ विकसित होता चला जाता हा कार इनकी शारीरिक बनावट, तन्त्रिका तत्र, मास क्षमता आयु के साथ साथ विकसित होते रहते है।

> अतः आय दोनों वर्गों में भेद का महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि बालक-बालिकाओं अनुभव का विकास उनकी बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करता है।

जाति के विषय में लैंगिक मुद्दे

> विभिन्न जातियों के समूह पर किये गये शोध से यह ज्ञात होता है कि उच्च बौद्धिक मान्यता के क्षेत्रों, यथा—तर्क, अवधान, अन्तःदृष्टि, निर्णय कुशलता में भेद परिलक्षित हुए हैं। आदिम जाति के लोगों में संवेदी तथा चालक अभिलक्षण (Characteristicil संवेदी अनुक्रिया में सूक्ष्मता तथा प्रत्यक्षण की सूक्ष्मता काफी अधिक थी।

अमिश्रित जातियों पर मनोवैज्ञानिक अध्ययन करना बड़ा जटिल कार्य है। जब हम एक ही देश में रहने वाली दो जातियों का अध्ययन करते हैं उनका वर्गीकरण करना कठिन होता है। ऐसे समय में इनके सांस्कृतिक तथा सामाजिक प्रभाव का सम्मिश्रण इतना अधिक हो जाता है कि जातीय संबंधी प्राकृतिक गुणों को अलग कर पाना संभव नहीं है।

मानसिक विकास का स्तर और क्रम वातावरण के प्रभाव तथा व्यक्ति की व्यक्तिगत योग्यताओं के आदान-प्रदान की विचित्र प्रक्रिया है। किसी क्षेत्र-विशेष का भौगोलिक वातावरण, जलवायु, रहन-सहन का ढंग, सांस्कृतिक वातावरण, व्यक्ति के लंबे जीवन को इतना अधिक प्रभावित करता है कि उसके प्रभाव की अलग से जाँच करना बहुत कठिन है।

शिक्षा में लैंगिक मुद्दे

> प्रायः समाज में लड़कियों की शिक्षा का विशेष महत्व नहीं दिया जाता है। लड़की को लड़के से भिन्न समझकर उसे निश्चित रूढ़िगत काम-धंधों में लगा दिया जाता है।

शिक्षण के समय कुछ अध्यापक भी लड़कियों पर अवांछित (Unwanted) टिप्पणी करते हैं, जो शिक्षण की रीति-नीति के अनुकूल नहीं है। ऐसे अध्यापकों की यह धारणा होती है कि लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए जो उन्हें सुगृहिणी तथा आदर्श माता बनाने में सहायक हो।

बालक तथा बालिकाएँ कुछ क्षेत्रों या योग्यताओं में अवश्य भिन्न हैं, पर इन क्षेत्रों में ये एक-दूसरे से आगे भी निकल जाते हैं। इसी आधार पर जन्मजात योग्यताओं के अधिकतम विकास के लिए विशेष शिक्षण रीति-नीति अपनाने की जरूरत है तथा अभाव के क्षेत्रों को प्रबल करने के लिए विशेष पद्धतियों का आश्रय लेने की आवश्यकता है।

एक अध्यापक को लैंगिक भेदभाव कम करने के लिए लिंग-भेद आधारित भावना के विरुद्ध बहादुरी वाला कदम उठाना होगा तथा लड़के-लड़कियों के बीच पाये जानेवाले वास्तविक भेदों को पहचानना होगा।

लड़कियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण लैंगिक भेद-भाव का दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है। समाज के निम्न स्तर से आने वाली लड़कियों के सन्दर्भ में इस स्तर पर भेद की बुराई और भी अधिक है।

समाज के निम्न स्तर पर रहने वाली जातियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा इसी प्रकार की अन्य अभावग्रस्त या सुविधाविहीन कई

जातियाँ हैं। इन पर दो दोष आ हन पर दो दोष आरोपित किये जाते हैं- () यह अभावग्रस्त परिवारों अत है। (ii) यह आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा और दलित है। ये दोनों शैक्षिक सामाजिक दृष्टिकोण उनके सामाजिक उन्नति में बाधक होते हैं।

दृष्टि से पिछड़े होने के कारण यह समुदाय अनुभव करते हैं कि लड़की की पर किये जाने वाले खर्च की तुलना में उनके विवाह पर किये जानेवाले खर्च कहीं अधिक लाभप्रद और उपयोगी है। लयों की शिक्षा से सम्बन्धित आर्थिक, शैक्षिक तथा सामाजिक पक्षों के विषय में मिलन करना अध्यापक के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यद्यपि अनेक राज्य सरकारों डाकियों की उचित शिक्षा के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं का शुभारम्भ सा है फिर भी लड़कियों की एक बड़ी संख्या विद्यालय की चहारदीवारी में प्रवेश नहीं कर पायी है।

परीक्षोपयोगी तथ्य

सामाज के विकास में बालक एवं बालिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

अनेक शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों का मत है कि सामाजिक तथा शारीरिक आधार पर महिला और पुरुष में भिन्नता है।

> आय में वृद्धि के साथ ही बालक-बालिकाओं में अनुभव का विकास उनकी बौद्धिक क्षमता को प्रभावित करता है।

> लैंगिक भेद लगभग सभी क्षेत्रों में विद्यमान है जैसे—व्यक्तित्व के विषय में, आयु के विषय में, जाति के विषय में, शिक्षा के विषय में। इन भेदभाव को कम करने के लिए अध्यापक को लिंग-भेद आधारित भावना के विरुद्ध साहसिक कदम उठाना होगा।

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